عزيزتي، | |
إذا رجعتُ لحظةً لنفسي | |
أشعر أن حبنا جريمَهْ.. | |
وأنني مهرجٌ عجوزْ | |
يقذفه الجمهور بالصفير والشتيمَهْ | |
أشعر أني سارقٌ | |
يسطو على لؤلؤةٍ كريمَهْ | |
أشعر في قرارتي | |
أن العبارات التي ألفظُها | |
جريمَهْ.. | |
أن انتصاراتي التي أزعمها | |
ليست سوى هزيمَهْ | |
فما أنا | |
أكثر من جريدةٍ قديمَهْ.. | |
وأنتِ مازلتِ.. | |
تحتاجينَ للأمومَهْ.. | |
إذا رجعتُ لحظةً لنفسي. | |
أدركُ يا عزيزتي | |
تفاهةَ انتصاري | |
أشعرُ أن حبّنا | |
تجربةُ انتحارِ.. | |
وأننا.. | |
ننكش كالأطفال في هياكل المحارِ.. | |
أشعر أن ضحكتي.. | |
نوعٌ من القمارِ.. | |
وقبلتي.. | |
نوعٌ من القمارِ.. | |
أشعر أن نهدكِ المزروعَ في جواري.. | |
كخنجرٍ مفضّضٍ.. | |
ككوكبٍ مَداري | |
يشتمني.. | |
يجلدني.. | |
يُشعرني بعاري.. | |
* | |
إذا رجعتُ لحظةً لنفسي | |
أشعر أن حبّنا | |
حماقةٌ كبيرَهْ.. | |
وأنني حاوٍ من الحواةْ.. | |
يُخرج من جيوبه الأرانبَ المثيرَهْ.. | |
وأنني كتاجر الرقيقْ.. | |
يبيع كلَّ امرأةٍ ضميرَهْ.. | |
أشعر في قرارتي | |
أن يدي في يدك الصغيرهْ.. | |
قرصنةٌ حقيرهْ.. | |
أن يدي.. | |
كخيط عنكبوتٍ | |
تلتفُّ حول الخصر والضفيرَه.. | |
أشعر في قرارتي | |
أنكِ، بعدُ نعجةٌ غريرَهْ | |
أما أنا.. فمركبٌ عتيقٌ | |
يواجهُ الدقائقَ الأخيرَهْ.. |
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غ
lundi 11 avril 2011
يوميات قرصَان
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